मिलना कभी फुर्सत से किसी अजनबी की तरह, ना किसी उम्मीद से और ना ही किसी नाराजगी को दिल में रखकर.. । पुरी करेंगे वो बातें जो अधुरी रह गयी, बिना किसी ख्वाहिश को दिल में जगाएं रखकर.. । मिलना कभी कुछ पलों के लिए दिल से हर शिकायत भुलाकर, खुलकर वो बातें करेंगे जो अनकही रह गयी...। कहते हैं, अधुरी कहानियां बोहोत सारे रास्ते खोल देती है उन्हें पुरी करने के लिए.., पर कोई बताता नहीं की कुछ कहानियां हसना भुला देती है खुद पुरा होते होते..। इसलिए गुजारिश है तुमसे, मिलना कभी फुर्सत में फिर एक बार अजनबी बनकर - मिलकर उन छुटी हुई अधुरी बातो को पूरा करने के लिए, उन अधुरी कहानियों को उनके अंजाम तक पहुंचाने के लिए..। मिलना कभी फुर्सत से किसी अजनबी की तरह दिल की हर शिकायत भुलाकर..!
आम्हा घरी धन शब्दांचीच रत्ने। शब्दाचीच शस्त्रे यत्न करू।। शब्दची आमुच्या जीवाचे जीवन। शब्दे वाटू धन जनलोका।। तुका म्हणे पाहा शब्दचि हा देव।